" भूकंप की त्रासदी एक संस्मरण "
26 जनवरी 2001 को देश अपना 52 वॉ गणतंत्र दिवस (Republic Day) मना रहा था. इसी दिन सुबह करीब 8 बजकर 45 मिनट पर गुजरात के कच्छ जिले के भुज मे भीषण भूकंप आया था, जिसमें करीब 20 हजार लोगों की जान चली गई और हजारों लोग घायल हुए थे.भूकंप के झटके अहमदाबाद और अन्य शहरों में भी महसूस किए गए थे l धरतीकंप का केंद्र भुज और गांधीधाम के बीच बसें एक कशबे अंजार मे था जहाँ भूकंप के दौरान सैकड़ो स्कूली बच्चे, टीचर आम नागरिक गणतंत्र दिवस क़ी रैली निकालते समय अंजार के गलियों और सड़को पर दोनों तरफ क़ी दीवार गिरने के कारण बिच मे दब गए और अपनी सहादत दे दी l भूकंप ने अंजार को खंडहर बना दिया था, सबसे ज्यादा नुकसान यही पर हुआ था l
मुझे अच्छी तरह याद है , वो दिन ! मैं भुज छावनी में पोस्टेड था, ऑप्रेशन के लिए सेनायें सीमा पर डिम्प्लायड थी, 25 जनवरी को रात में इस तरह का आदेश मिला की कभी भी पाक एयरफोर्स के फाइटर हमारे क्षेत्र में आक्रमण कर सकते है l
रात का खाना खाने के बाद हम जल्दी सो गए क्योंकि सुबह 9 बजे 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड हमेशा की भांति देखना था ll सुबह जल्दी उठकर बड़े बच्चे को 0730 बजे स्कूल छोड़ा और घर आकर ब्रश में पेस्ट डालकर मुँह धोता हुआ घर से बाहर आकर देखता हूं की मेरे पड़ोस के हवलदार चहल जो कल ही नया वेसपा स्कूटर ख़रीदा था उसका इंजिन आयल जमीन पर बिखरा हुआ है ,मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया उसके बाहर आने पर मैंने उसे दिखाया तो बात करते हुए पता चला श्रीमान जी को कल स्कूटर लेने की ख़ुशी में दोस्तों के साथ पार्टी क़ी थी , कॉकटेल पार्टी के कारण आते वक्त रात को इंजिन वाला भाग किसी pathar🙏 से टकराया है,जिसका परिणाम इंजन आयल को बिखरा हुआ हम देख रहे थे, ये बात अभी हो ही रही थी की लगभग 8 बजकर 45 मिनट पर अनेकों जेट फाइटर की आवाजें सुनाई पड़ी जैसे छत से 08-10 फाइटर जेट एक साथ आने पर सुनाई देता है l आसमान में बहुत तेज गड़गडाहट सुनाई पड़ी, हमलोग भागकर खुले मैदान मे आ गए, जब आकाश की ओर देखते है तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया अपितु बिजली के तार और खम्बे हिल रहे थे, तुरंत समझ में आ गया की कही भूकंप धरतीकंप तो नहीं आ गया, अनुमान बिल्कुल सही था l बाद मे पता चला रेक्टर स्केल पर इसकी तिब्रता 7.7 थी l
घर के अंदर श्रीमतीजी नास्ता बनाने में ब्यस्त थी,बदहवास भागता हुआ उनका हाथ पकड़ कर घर से बाहर लेकर भागा जैसे ही हम बाहर निकले पूरे पारिवारिक आवास के लोग बाहर निकल रहे थे , कुछ लोग जो नहीं जान पाए शोरगुल सुनकर बदहवास भूकंप आ गया, भूकंप आ गया बोलते हुए बाहर आ गए बच्चों की हर तरफ रोने की आवाजे आ रही थी l तभी पत्नि को छोटू का ध्यान आया, उसको हमारी निगाहेँ ढूंढ़ने लगी लेकिन वो कही नज़र नहीं आ रहा था,बड़े को तो थोड़ी ही देर पहले स्कूल छोड़कर आया था ! इसी बीच छोटू उस समय वो डेढ़ या दो साल का रहा होगा, हम उम्र बच्ची के साथ सेफ्टीटैंक पर खेलता हुआ दिखाई दिया, हम दोनों को तो काटो तो खून नहीं, अब क्या करें ??? घरों की दीवारे भूकंप के कारण फट गयी थी इतना ही नहीं कई लोगो के दरवाजे भी नहीं खुल रहे थे, कई परिवार तो अपने बालकनी से जान बचाने के चक्कर मे कूद गए , चोट लगने के वावजूद लोग यही कहते हुए मिले की जान बची तो लाखों पाएं l दिवार कही कहीं से टूटकर गिर गयी थी, ऐसे में डर यही था की कही सेफ्टी टैक का लिंटर टुटा तो बच्चे उसमे गीर जायेंगे !!? मैं भागता हुआ दोनों बच्चों को अपने हाथों से पकड़ उन्हें सेफ्टी टैंक से हटाया तब जान में जान आयी, ये सभी कार्य 1मिनट 50 सेकंड के अंतराल में हुआ, तब तक भूकंप के कई झटके आ चुके थे l
अब हम दोनों की चिंता बड़े की थी जो अपर के जी में था झंडा-तोलन के लिए स्कूल छोड़कर आया था , मैं स्कूटर लेकर स्कूल की तरफ भागा वहां का नजारा और भी भयावह था बच्चे रोते बिलखते स्कूल के मैदान में इधर उधर भाग रहे थे, उनके रोने चिल्लाने की आवाजों के बिच इधर उधर भागने के कारण ढूंढ़ना मुश्किल था, उन्हें सँभालने वाला ना तो स्टाफ था और नहीं ही कोई टीचर भूकंप के कारण अपने अपने घरों की तरफ भाग लिए थे l बच्चों के माता-पिता अपने लाडले और प्यारी बेटियों को ढूंढ़ने में लगे हुए थे, स्कूल की छत धरासायी हो गया था जगह 2 दीवारें गिरी हुई थी,भगवान का शुक्र था किसी बच्चे के चोटिल होने की सुचना नहीं थी l बड़े पर जैसे ही निगाह पड़ी, भागकर उसे उठा सीने से लगा लिया, उसे चुप करा साथ लेकर घर आ गया l इसी बीच यूनिट से सुचना आ गयी थी की रिलीफ कार्य सेना तत्काल शुरू करने जा रही है, यूनिट में रिपोर्ट करें l भुज शहर की रिपोर्ट ठीक नहीं थी भुज शहर लगभग खंडहर बन गया था, बड़े बड़े अपार्टमेंट 45 डिग्री पर और निचे का बेसमेंट तीन चार फ्लोर तक जमीन मे समा गए थे,चार्जमंजिला सिविल हॉस्पिटल की दीवारें तो सैंडविच की तरह आपस में मिलकर धाराशायी हो गया था, सैकड़ो डॉक्टर नर्स और मरीजों का कोई अता पता नहीं था, जिला जेल की बाहरी दिवार टूटने के कारण सारे अपराधी वहां से भागखड़े हुए और सुनार मोहल्ला साथ होने के कारण टाबरतोड़ लूटपाट शुरू कर दिया, प्रशाशन पंगु हो गया था वो लोगो का जान बचाये या लूटपाट रोके किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, जिलाधिकारी महोदय ने सेना से तत्काल मदद मांगी और सेना ने बीना देर किये राहतकार्य आरम्भ कर दिया, पूरा कैंट कुछ गिने चुने लोगो को छोड़कर राहत कार्य में युद्ध स्तर पर लग गया l
भुज में एक छोटा सा मिलिट्री हॉस्पिटल था देखते 2 घायलों से भर गया, वहां के किसी भी वार्ड अब जगह नहीं बची तो खुले मैदान में ही इलाज शुरू करना पड़ा, वहाँ की स्तिथि इतनी भयावह और डरावनी थी क़ी आम इंसान इसे देख कर ही बेहोश हो जाये l थोड़ी ही देर मे मेडिकल इंस्ट्रूमेंट,साधारण पट्टी और मेडिसिन की कमी होने लगी थी l
हालात ऐसे हो गए की डॉक्टरों ने मरीजों और घायलों की जान बचाने के लिए किसी का पैर किसी हाथ काटने मे भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाया l बेड, स्ट्रेचर की कमी होने के कारण इनका इलाज बेडशीट बिछा कर जमीन पर ही मरहम पट्टी शुरू कर दी गयी l राहत कार्य में सिफ्टवाइज सेना अगले 36 घंटो तक लगी रही, राहत कार्य के दौरान सेना ने ऐसे लोगों की भी जान बचायी जिन्हे 20- 36 घंटे के अंतराल पर मालवे से निकला गया l उनमे कई दूधमूहा बच्चा तो कोई बुजुर्ग l अगले तीन दिनों तक भुज पूरे भारत और विश्व से संचार ब्यवस्था से कटा रहा l ट्रेन, ट्रक बसें कोई भी ठीक तरीके से नहीं चल पा रही थी , मात्र दो दिनों में भुज एयरफोर्स के विमान राहत कार्य में जुटे, इससे थोड़ी राहत तो अवश्य मिली l कुदरत का कहर जो था वो तो था ही, भुज जैसे जगह पर 26, 27 और 28 की रात भी भुज वासियों पर ठण्ड का प्रकोप काफ़ी कहर बरपाया, जो इंसान भूकंप के त्रासदी से बच गए थे, इन तीन रातों मे ठण्ड ने बचे-खुचे, लोगों को अपने आगोश मे सुला दिया, जिसमे हज़ारों लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी l तीसरे दिन से थोड़ी राहत मिली संचार व्यवस्था चालू हुई, राहत सामग्री भी रोड और हवाई रास्ते पहुँचने लगी तब जाकर लोगो को रोटी कपड़ा और टेंट, कम्बल रात गुजारने के लिए मिलने लगे l खाने पिने के लिए भी राहत सामग्री मित्र देशों से पहुंचने लगे तब लोगों को कुछ राहत मिली l इस बीच शहर के कई क्षेत्रो से लाशों के सड़ने से वतावरण दूषित होने लगा था l समय चक्र ऐसे बदला की खुशहाल भुज शमशान मे बदल गया था l
अब तो इंसानियत भी धीरे 2 लोगो में समाप्त होने लगी थी, जैसा की आप सबको ज्ञात होगा गुजराती लोग सोना बहुत पहनते है, डेड बॉडी की पहचान तो ये करते थे लेकिन उन्हें हाथ लगाने पर परहेज / जुर्रत नहीं करते थे, गुजराती अपने मां - पिता , पत्नि, बेटी और बच्चों की पहचान तो करते थें लेकिन शव पर पहने सोने और चांदी या हिरे मोती के गहने तो मुझे उतारकर दे दो लेकिन अपने अजीजो की जिम्मेदारी नहीं लेते थे, अब इनका दाह संस्कार भी प्रशाशन को ही करना पड़ा JCB के बकेट द्वारा उन्हें उठा कर सामूहिक दाह संस्कार के लिए अपनों का परित्याग कर दिया I इससे पता चलता है नंगे आये है और नंगे जायेंगे, माया मोह कुछ नहीं कलयुग में अपने लिए जियो अब अपनों के लिए जीना जरुरी नहीं है I इस संस्मरण से मुझे एक ही सीख मिली समाज में राम सलाम तो आवश्यक है, माया मोह को त्यागिए अपनों के लिए नहीं अपितु अपने लिए जिए I जिस तरह से बुढ़ापे का साथी अर्धांगिनी होती है उसको साथ लेकर जिए, खुशहाल रहे I इस संस्मरण में कई और सोपान है जिसकी चर्चा भविष्य में मैं अवश्य करूँगा I
🙏Balliati07666🙏
जल्दी ही फिर मिलेंगे 🙏
ReplyDeleteऐसी त्रासदी ईश्वर कभी ना दिखाए 🙏
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