बरगद का बृक्ष
ये मेरे जीवन का अर्धसत्य प्रसंग है,उस दिन बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया,इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया l मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा l जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है l आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था, जिसे वो किसी को हाथ तक न लगाने देते थे l मुझे पता है इस पर्स में जरुर पैसों के हिसाब की डायरी होगी??? पता तो चले कितना माल छुपाया है,माँ को भी हाथ नहीं लगाने देते जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है lमैंने जूता निकाल कर देखा,मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था lजूते की कोई कील निकली हुयी थी, दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत था और मुझे घर छोड़कर जाना ही था l कुछ दूर चला,मुझे पांवो में गिला गिला सा लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था,पाँव उठा के देखा तो जूते का तला टुटा हुआ था lजैसे तैसे लंगड़ा कर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी l मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये पर्स खोला, एक पर्ची द...