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" समाज में व्याप्त आईना रूपी संवेदना "

शिकायतों का अंबार क्यों ? ✍️✍️✍️✍️    रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत सी ऐसी घटनायें रोज देखने और सुनने को मिलती है कुछ लोगों के पास पैसे नही हैं वह मीलों पैदल चले जाते हैं , यह कहकर कि पैदल चलना अच्छा लगता है ! कईयों के पास चन्द सिक्के हैं जेब में,वह बसों में सफर कर लेते हैं जहां कभी-कभी भीड़ की वजह से घण्टों एक पैर पर खड़े होकर सफर करना पड़ता है , कहते हैं भीड़ का अपना ही मज़ा है क्योंकि वह अपनी परिस्थितियों का हवाला देकर बहाने नही बनाया करते ! हजारों लाखों लोग सामान्य रेल डिब्बे में सफर करते हैं, एक दूसरे के पसीने बदबू में ! कभी-कभी बर्दाश्त नही होती वह बदबू तो उल्टियां भी कर देते हैं फिर भी बिना शिकायत के ऐसे ही अनगिनत लोगों का रोजमर्रा का जीवन बीतता है....जब भी ख़ुद से शिकायत हो ! ऐसे उदाहरण देख लेना फिर शायद , शिकायतों का पलड़ा हल्का हो जाये तुम्हारा.....करने बैठो तो हजारों शिकायतें हैं ख़ुद से भी दूसरों से भी....ऐसा क्यों नही , ऐसा ही क्यों ?? यह क्यों होता है हमारे साथ ही ? आदि आदि लेकिन कभी रास्तों पर चलते सड़क किनारे भीख मांगते बच्चे , छोटे दूधमूयें बच्चों के लिए अनगिनत मांयें, ब...