नैतिकता का अभाव और एकल जिम्मेदारी

वैदिक शास्त्रों में कई जगहों पर ये बताया गया है की पिता और पुत्र के कैसे सम्बन्ध होने चाहिए l ऐसा कोई वेद नहीं है जिसमे ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्वद या वो सामवेद ही क्यों ना हो सभी वेदों में लिखा गया है, लेकिन कलयुग के आने के बाद ये अलग अलग ढंग से परिभाषित किया जाने लगा l आज कल की पीढ़ी तो इन बातो को मानना तो दूर इन्हे पढ़कर ज्ञान लेना भी उचित नहीं समझती l संतान की उत्पत्ति करना अपने वंश को चलाना नहीं अपितु ये कहकर टाल दिया जाता है की मैं पूर्णरूपेण समर्थ होने पर ही ये जिम्मेदारी उठा पाउँगा l ऐसी सोच हमें कहाँ लेकर जा रही है, माँ तो अपने उदर में 09 माह रखने के बाद बच्चे को जन्म देती है लेकिन पिता तो जीवनभर उन्हें खिलाने - पिलाने, पढ़ाई-लिखाई और एक अच्छा नागरिक बनाने में अपनी जिंदगी खपा देता है इसके वावजूद भी उसे सुनने को मिलता है की आप ने किया ही क्या है? आप ने अपनी जिम्मेदारी निभाया ये तो सभी माँ बाप करतें है l नयी पीढ़ी इसी को प्रैक्टिकल होना कहते है 😄😄 आप ने सही लालन पालन नहीं किया नहीं तो आज मैं कुछ और होते l
 कलयुग या वर्तमान में ऐसा सोचना नयी पीढ़ी का एक संस्कार सा हो गया है l ऐसे में क्या सबकुछ करने के बाद उनसे एक प्यार का आशा करना गलत है ??? आज उनका भला सोचना भी गलत है, इनसे तो यही सुनने को मिलता है की आप चील करो हम अपना अच्छा बुरा सोच सकते है, हम बड़े हो गए है निर्णय लेने में सक्षम है l ऐसे में हमें क्या करना चाहिए, जिसने अपना सब कुछ इन पर न्योछावर कर दिया वो इनका क्या अब बुरा चाहेगा ??? दोस्तों ये आप बीती नहीं हर घर में ऐसा होने लगा है, आप किसी भी सामुदायिक स्थान, पार्क में चले जाएँ बड़े बुज़ुर्ग ऐसी बातें करते मील जाते है, क्या भारतीय संस्कृति,नैतिक शिक्षा और हमारी सभ्यता का असर इन बच्चों में अपना प्रभुत्व नहीं जमा सकी l हमारी 5000 हज़ार साल पुरानी सभ्यता की जगह पश्चात्य सभ्यता ने ले लिया है ????.
कभी 2 तो लगता है की हम  केवल अपने बारे में सोचतें है l घर परिवार में जो बच्चा बेरोजगार है या अपनी शिक्षा पूरी कर रहा है जो अपने पैरो पर खड़ा नहीं है वो भी बोलता हुआ मिलता है कुछ दिनों में मैं भी चला जाऊंगा फिर अपनी सोच दोनों बूढा बुढी एक दूसरे को सुनते रहना, ऐसे में हम बुजुर्गो को इनकी और जिम्मेदारी उठानी चाहिए ????.
कभी 2 मैं सोचता हुँ इनको छोड़ने और अपनी जिम्मेदारियों से भागने के कारण, इन्हे हम ही आज़ाद / मुक्त कर दें l लड़का हो तो पुत्र की जिम्मेदारी से और लड़की हो तो उसकी दीर्घाकालीन जिम्मेदारी से मुक्त कर बची हुई जिंदगी सुकून से गुजारा जाय क्या ये गलत होगा???.
कही ऐसा तो नहीं जो मैं अपना विचार आजकल की पीढ़ी पर दे रहा हु वो सही नहीं है लेकिन जितना मैं देखता हु या सुनता हुँ या बुजुर्गो से बात करके ज्ञान मिला है वही मैं लिख रहा हुँ l ऐसा नहीं कि आज कल कि नयी पीढ़ी 100% इसी सोच पर चल रही है 5 % अभी भी है जो परंपराओं को निर्वहन कर रहे है हंसी ख़ुशी अपनी जिंदगी बिता रहे है लेकिन 95% तो हमारे ही जैसे है l
 🙏 SoLoMoN007766🙏


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