अंतरजातीय बिबाह का दुष्परिणाम और निदान
सभ्यता धरोहर में नहीं मिलती
आश्चर्य कि बात है हम सब ऐसा ही कहेँगे, आज कल कि नयी पीढ़ी भौतिक सुख को ही उत्तम समझती है चाहे इसके लिए कोई भी समझौता ही क्यों ना करना पड़े l परम्पराओं का निर्वहन करना हम सभी मानव जाति का परम कर्त्तव्य है नहीं तो मानव और जानवरों में भेद करना कहाँ संभव है, इस सच्चाई को झूठलाना आसान नहीं होगा l
रामायण, महाभारत व पुराणों में लिखित सभ्यता, परंपरा, संस्कृति व रितिरिवाजों को हम ताक पर रख कर सब मनमानी करते l ये हमारी आस्था के प्रतिक है जिसका निर्वाह हम करते आ रहे है l बंश, कुल, गोत्र आदि का वर्णन बखूबी इन ग्रंथो में किया गया है, हमारे पूर्वज इन्हे सत प्रतिशत पालन करते थे जिसके कारण हमारी नीव काफी मजबूत है l
आज हममें से कुछ एक लोग इस नये युग में एडवांस बनने के लिए इन बातो को दरकिनार कर रहे है साथ नयी पीढ़ी तो इन चीजों को समझने के लिए तैयार नहीं उनका वाद विवाद के बाद यही कहना होता है कि ये सब वकवास है ऐसा कुछ नहीं होता रिश्ते तो ऊपर वाला बनाता है जिसे झूठलाते हुए दिन प्रतिदिन ये अंतरजातीय बिबाह कि ओर हम तेजी से भाग रहे है, जिद्द वॉ ना समझी के के कारण हम जैसे लोग समझौता कर के ऐसा स्वीकार कर लेते है l इससे हम अपना वंश, कुल व गोत्र को कलांकित कर रहे है जो उचित नहीं है l ऐसे में हमें अपने नये रिस्तेदार को सही ढंग से जाँचने परखने का समय नहीं मिलता l
आजकल कि पीढ़ी मात्र अपने आर्थिक और भौतिक सुखो को ध्यान में रखकर ऐसा निर्णय ले लेते है और हम उसे स्वीकार कर लेते है जो कि उनके भविष्य के लिए घातक है l रामायण में अंतरजातीय बिबाह का उल्लेख मैं यहाँ करता हुँ जो इसप्रकार है - रावण को हम सब जानते है इनके पिता विश्रवा जिनकी दो पत्नि जिसमे एक से कुबेर का जन्म होता है जो एक ऋषि कि पुत्री थी और दूसरी कैकशी से रावण का जन्म होता है जो राक्षस कूल कि कन्या थी l इसके परिणाम से हम भाली भांति परिचित है l वैसे ही महाराजा शांतनु जो एक महाप्रतापी राजा हुए इनकी भी दो पत्नियां थी जिसमे एक गंगा जो शिव की जट्टा से भागीरथ पृथ्वी पर लाये इनसे देवब्रत जो अपनी प्रतिज्ञा के कारण भीष्म पितामह बने और दूसरी सत्यवती जो एक मछुआरे की पुत्री से प्रेम बिबाह करने के कारण कौरव बने, इसका परिणाम हमें महाभारत के रूप में मिला, अंतरजातीय बिबाह का असर हम और कई उदाहरण से भी समझ सकते है l
आजकल के बच्चे जो कर रहे है एक सर्वे के मुतावीक लगभग 60% शादियां घर बसने से पहले ही बिखर जाती है अतः बिबाह हमेशा कूल, गोत्र, परिवार के संस्कार, परम्परा और उसकी संस्कृति को देखे बिना नहीं करनी चाहिए, साथ ही कुंडली मिलन के पश्चात करना उचित होगा l आर्थिक व भौतिक सुख तो इनके सही मिलन से प्राप्त हो जाता है यही अगर आज की पीढ़ी समझ जाय तो सोने पर सुहागा l अंततः इस बिबाह स्वीकारोक्ति से बच्चे और अपने बच्चों को भी उनको आहत होने से बचाएं, बच्चे तभी सुखी रहेंगे जब हम उन्हें समाज में ब्याप्त अच्छाई एवं बुराई से उन्हें आगाह करते हुए अपने कूल, वंश परंपरा, गोत्र, अपनी संस्कृति व उन्हें नैतिक शिक्षा के ज्ञान उनमे कूट कूट करें भरेंगे l
🙏Baliati00776🙏
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